V.S Awasthi

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कविता चली गाँव ओर




कविता चली गांव की ओर
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कविता चली गांव की ओर
जिसका कोई ओर ना छोर
खेतों में पशु हर चरते ओर
पेड़ों में पंछी करते हैं शोर
कारे बदरा छाए घनघोर
जंगल में नृत्य कर रहे मोर
कविता चली गांव की ओर 
जिसका कोई ओर ना छोर

मानव में बंधी प्यार की डोर
जब होती है सुबह की भोर
मुर्गा भी बांग लगाता ज़ोर
अंगना में चिड़ियां करती शोर
मन्द पवन बहती चहुं ओर
झरने करते हैं निर्झर शोर
कविता चली गांव की ओर
जिसका कोई ओर ना छोर 

बगिया में अलि करते हैं शोर
तितलियां घूम रहीं चहुं ओर
मलय सुगन्ध उठे पुर जोर
उपवन में हरियाली चहुं ओर
मन मतंग खुशियों का जोर
खुशी से बच्चे करते हैं शोर 
कविता चली गांव की ओर
जिसका कोई ओर ना छोर 

शहर छोड़ कर कविता आई
कविता को ले आई पुरवाई
उसको गांव की प्रकृति लुभाई
कविता इसी से गांव में आई
दिल है उसका भाव-विभोर
कविता खुशी से करती शोर
कविता चली गांव की ओर
जिसका कोई ओर ना छोर

विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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10 Comments

Swati chourasia

17-Sep-2022 10:31 PM

बहुत खूब

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Bahut khoob 💐

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Pankaj Pandey

19-Aug-2022 07:51 AM

Behtarin rachana

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